"उत्तर भारतीय ब्रह्म समाज'' आपका हार्दिक स्वागत करता है । कोई भी समुदाय ऐसे लोगों का समुच्चय होता है जिनमें भौतिक, मानसिक एवं व्यावहारिक साम्य हो । जीवन-पद्घति समान होते हुए भी एक बृहत् जनसंख्या वाले शहर में प्रकीर्ण रूप से रहने के कारण व्यापक रूप से विचारों का आदान-प्रदान संभव नहीं हो पाता है । व्यावहारिक अभाव के कारण उत्तरदायित्वों के निर्वाह में भी अगणित समस्याओं का सामना करना पड़ता है । एक लघु कालखण्ड इसी निष्क्रिय अवस्था में व्यतीत होता है । तत्पश्चात् कुछ प्रबुद्घ एवं सचेष्ट लोगों की विवेकपूर्ण सक्रियता एक समुदाय के गठन की ओर संचालित होती है और एक लघु इकाई के रूप में एक 'समाज' की रचना होती है, जो अन्योन्याश्रय द्वारा एक-दूसरे के प्रति सौहार्दभाव रखते हुए परस्पर सहायक बनते हैं । ऐसे समाज के मूल में होती है 'स्व' से ऊपर उठकर परार्थ की भावना जो उस समाज को अक्षुण्ण रखती है एवं लोगों के हितों की रक्षा करती है.
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